Arogya Mandir
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Phone Numberसंधि शोथ यानि "जोड़ों में दर्द" (लैटिन, जर्मन, अंग्रेज़ी: Arthritis / आर्थ्राइटिस) के रोगी के एक या कई जोड़ों में दर्द, अकड़न या सूजन आ जाती है। इस रोग में जोड़ों में गांठें बन जाती हैं और शूल चुभने जैसी पीड़ा होती है, इसलिए इस रोग को गठिया भी कहते हैं।
संधिशोथ सौ से भी अधिक प्रकार के होते हैं। अस्थिसंधिशोथ (osteoarthritis) इनमें सबसे व्यापक है। अन्य प्रकार के संधिशोथ हैं - आमवातिक संधिशोथ या 'रुमेटी संधिशोथ' (rheumatoid arthritis), सोरियासिस संधिशोथ (psoriatic arthritis)।
संधिशोथ में रोगी को आक्रांत संधि में असह्य पीड़ा होती है, नाड़ी की गति तीव्र हो जाती है, ज्वर होता है, वेगानुसार संधिशूल में भी परिवर्तन होता रहता है। इसकी उग्रावस्था में रोगी एक ही आसन पर स्थित रहता है, स्थानपरिवर्तन तथा आक्रांत भाग को छूने में भी बहुत कष्ट का अनुभव होता है। यदि सामयिक उपचार न हुआ, तो रोगी खंज-लुंज होकर रह जाता है। संधिशोथ प्राय: उन व्यक्तियों में अधिक होता है जिनमें रोगरोधी क्षमता बहुत कम होती है। स्त्री और पुरुष दोनों को ही समान रूप से यह रोग आक्रांत करता है।
तीव्र संक्रामक (acute infective) संधिशोथ,
जीर्ण संक्रामक (chronic infective) संधिशोथ
जोड़ों में दर्द या नरमी (दर्द या दबाव) जिसमें चलते समय, कुर्सी से उठते समय, लिखते समय, टाइप करते समय, किसी वस्तु को पकड़ते समय, सब्जियां काटते समय आदि जैसे हिलने डुलने की क्रियाओं में स्थिति काफी बिगड़ जाती है।
शोथ जो जोड़ों के सूजन, अकड़न, लाल हो जाने और/या गर्मी से दिखाई पड़ता है।
विशेषकर सुबह-सुबह अकड़न,
जोड़ों के लचीलेपन में कमी,
भोजन की थोड़ी सी मात्रा भी भोजन की अधिक मात्रा की उपेक्षा अधिक ऊर्जा देगी। इसीलिए योगी बिना अपने शरीर को कोई क्षति पहुँचाए कई दिन तक उपवास कर पाते है।
जोड़ों को ज्यादा हिला डुला नहीं सकना,
जोड़ों की विकृति, वजन घटना और थकान,
अविशिष्ट बुखार,
खड़-खड़ाना (चलने पर संधि शोथ वाले जोड़ों की आवाज)
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1) आरोग्य जागृति एवं रोग मुक्ति अभियान
2) सकारात्मक सोच की वृद्धि
स्वस्थ व्यक्ति, स्वस्थ समाज
सर्वेऽत्र सुखिनः सन्तु, सर्वे सन्तु निरामयाः।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःखमाप्नुयात् ।।
Nadi Parikshan, Skin related disease, Thyroid, Migraine,
Blood Pressure, Diabetes, Sandhivat, Infertility, Psoriasis
1) आरोग्य जागृति एवं रोग मुक्ति अभियान
2) सकारात्मक सोच की वृद्धि
स्वस्थ व्यक्ति, स्वस्थ समाज
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चिंता न करें हमारी संस्था रोग मुक्ति अभियान पर चल रही है,
जिसमें रोग क्यों अच्छा नहीं होता है, दवा लेने के बाद भी रोग बार-बार क्यों होता है ??
ऐसा क्या करना चाहिए जिससे रोग दूसरी बात ना हो उसके कहीं फैक्टर है वह समझ ने के लिए वैद्य वाणीजी का व्याख्यान सुनना होता है।
3 से 4 महीने के बाद अच्छा होने का शुरू होता है और 12 महीने का कोर्स होता है।
अच्छा, लेकिन हमारी संस्था भारत भर में पहली ऐसी संस्था है जो व्याख्यान से रोग मुक्ति हो वह चाहती है, इस वजह से संस्था हर राज्य में से दर्दी पहली बार वैद्य जी का व्याख्यान सुनने आते हैं।
नहीं, हमारी संस्था दवा देना और दवा बेचने का काम नहीं करते हैं, आपको अच्छा करना वही हमारी संस्था का सिद्धांत है, अगर आप पूरी तरह अच्छा होना चाहते हैं तो एक बार आपको संस्था में आकर वहीद जी का व्याख्यान सुनना होगा।
हमारी संस्था सोमवार से शुक्रवार में Appointment लेकर आना होता है, और आपको संस्था में से मैसेज आता है
हमारी संस्था में फाइल चार्ज, कंसल्टेंसी चार्ज नहीं होता है, निशुल्क निदान किया जाता है लेकिन आपके प्रकृति के तथा 7 धातु के अनुसार प्राकृतिक दवाई दी जाती है उसका एक खर्च होता है।
हमारी संस्था है यह प्राइवेट नहीं है केवल समाज के लिए काम करती है।
सही बात है। लेकिन आपने जो ट्रीटमेंट(Treatment) ली है वह बाहर से की होती है, इसीलिए थोड़े टाइम (Temporary) के लिए अच्छा होता है।
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